सच्चा सुख और संतोष

प्रकृति के नियमों में यह एक महत्वपूर्ण सत्य है कि सभी कर्तव्य, पद, प्रतिष्ठा, और धन अनित्य हैं। इस अनित्यता का अवगाहन करना हमें यह सिखाता है कि सच्चा सुख और संतोष अंतर्निहित होता है, न कि बाह्य वस्तुओं में।

त्याग और नाश, ये दोनों ही अहम वास्तविकताओं के पहलू हैं। त्याग करना वास्तविक स्वतंत्रता का प्रतीक है, जबकि नाश स्वयं की अनुभूति के बिना वस्तुओं का अस्तित्व का अन्त होता है।

इसी तरह, हमें यह समझना चाहिए कि सभी कर्तव्य, पद, प्रतिष्ठा, और वैभव केवल माया हैं, जो विस्थापित होती है और फिर अपने आप ही नष्ट होती हैं। हमें इस बात का आदर्श बनाकर, आत्म-समर्पण और संतोष के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए।

इस प्रकार, हमें अपने जीवन को अनित्यता के बीच उदारता और सहानुभूति के साथ जीना चाहिए। यह हमें वास्तविक संतोष और स्थिरता की ओर ले जाएगा, जो हमें आत्मिक शांति और पूर्णता की अनुभूति देगा।

प्रकृति में सदा कुछ भी अस्थायी है, यह एक महत्वपूर्ण सत्य है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए। जीवन का मूल्य और महत्व समझने के लिए हमें अनित्यता के इस तत्व को समझना आवश्यक है। इसलिए हमें उदारता और सहानुभूति के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए।

सूर्य का उदय और पश्चिम की ओर लहराने वाली धूप हमें समय के पलटाव का संदेश देती हैं। यह एक सुनहरा संदेश है कि हर वस्तु के लिए एक समय आता है जब उसका स्थितिकरण होता है, और फिर वह पलटाव के द्वारा अपने स्वाभाविक रूप में लौटता है।

जीवन में भी, हमें समय के साथ साथ चलने और परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को समायोजित करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। हमें विपरीत परिस्थितियों के साथ सहनशीलता और संजीवनी शक्ति की भावना बनाए रखनी चाहिए, ताकि हम समय के साथ बदलाव का सामना कर सकें।

अतः, हमें उदारता के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हम समय के पलटाव के साथ सहज रूप से लड़ सकें और जीवन को अधिक उत्तेजना और संतुष्टि से भरपूर बना सकें।

वृक्षों के फलों का उदाहरण लेते हुए, हम एक गहरी सच्चाई को समझते हैं। जब भी किसी वस्तु को उसके स्थान से हटा दिया जाता है या उसे अन्यथा वितरित किया जाता है, तो उस वस्तु का सतत सृजनात्मक शक्ति समाप्त हो जाता है।

विचार करें, जब एक वृक्ष के फलों को उसके विशेष रूप से बाँटा नहीं जाता, तो उन फलों में अपने आप ही अस्थिरता की भावना उत्पन्न होती है। इस अस्थिरता के कारण, वे फल सड़ने लगते हैं और अन्त में उनका विनाश हो जाता है।

इसी तरह, हमारे जीवन में भी, जब हम अपनी संपत्ति, प्रतिष्ठा और यश को संभालकर नहीं रखते, तो उन्हें खोने का खतरा बढ़ जाता है। समय के साथ, प्रकृति द्वारा सब कुछ अपने आप ही ले लिया जाता है।

हमें यहाँ पर एक महत्वपूर्ण उपदेश मिलता है। हमें अपने जीवन में यश और कीर्ति की सुगंधी को बिखेरने की बजाय संतुष्टि और सामंजस्यपूर्णता की दिशा में प्रयास करना चाहिए। इससे हम अपने आत्मा को स्थायित्व और शांति का अनुभव करेंगे, जो सच्ची सुख और संपूर्णता की ओर ले जाएगा।

इस तरह, हमें अपने जीवन को संतुष्टि और आनंद से भरपूर बनाने के लिए अपने आदर्शों को संजोकर आगे बढ़ना चाहिए। यह हमें असली और सार्थक सफलता का मार्ग दिखाएगा।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, यही ज्ञान है, यही विज्ञान है।
भज मन 🙏ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः #sumarti

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