राम नाम की महिमा

राम नाम की महिमा

|| राम नाम की महिमा : दो अक्षरों के इस छोटे से नाम में भरे हैं अद्भुत रहस्य ||
राम परमचेतना हैं, साक्षात ईश्वर हैं, जो हर मानव के अंदर मौज़ूद हैं। हमारा शरीर ‘दशरथ’ है और इस शरीर रूपी दशरथ के सारथी हैं ‘राम’। श्रीराम मनुष्य के सभी सात्विक गुणों के प्रतिनिधि हैं। राम अहिंसा हैं, मर्यादा हैं, प्रेम हैं, जीवन के उत्सव और आनंद हैं। इसीलिए असली रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें श्रीराम के गुणों को अपनाना होगा।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन माहि|
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि॥
संत कबीर के इस दोहे का अर्थ है – अपनी ही कस्तूरी की महक से बौराया हिरन उस कस्तूरी को वन-वन खोजता फिरता है। क्योंकि वह इस बात से अनजान है कि कस्तूरी उसकी अपनी ही नाभि में छिपी है। इसी तरह राम (स्वअनुभव) मानव के अंदर ही है। उसे उसका अनुभव भी होता है मगर उस अनुभव को समझने में नाकाम मानव राम को बाहर वनों, पहाड़ों, मंदिरों, मस्ज़िदों, कर्मकाण्डों में खोजता फिरता है।

राम निराकार, निर्गुण, अजन्मा, अनंत, निरंतर, असीम, सर्वव्यापी हैं। हालाँकि राम का अनुभव हम सब ने किया होता है लेकिन कितने लोग हैं, जो उस अनुभव को पहचानकर, वहाँ स्थित हो पाते हैं!

राम…राम…राम… जरा अपने मन में यह एक शब्द धीरे-धीरे और प्रेम से दोहराइए एवं देखिए क्या महसूस होता है? कुछ लोग यह नाम लेते ही अपने भीतर गहरी शांति और आनंद का अनुभव करते हैं और कुछ लोगों के मस्तिष्क में श्रीराम का महान चरित्र, उनसे जुड़ी कथाएँ तथा उनकी लीलाएँ उभर आती हैं, जो उन्हें सकारात्मक ऊर्जा से भर देती हैं। यही है राम नाम की महिमा। दो अक्षरों के इस छोटे से नाम में क्या जादू है, यह किसी राम भक्त से पूछकर देखिए। किसी को इस एक नाम ने दुःख में भी धीरज और ईश्वर पर विश्वास रखना सिखाया, तो कोई इसे जपने से आत्मसाक्षात्कार तक पहुँचा है।

राम परमचेतना का, ईश्वर का नाम है। जो हर मनुष्य के अंदर उसके हृदय में निवास करता है। मानवशरीर ‘दशरथ’ है। अर्थात दस इंद्रियाँ रूपी अश्वों का रथ। इस रथ के दस अश्व हैं – दो कान, दो आँखें, एक नाक, एक जुबान, एक (संपूर्ण) त्वचा, एक मन, एक बुद्घि और एक प्राण। इस दशरथ का सारथी है – ‘राम’। राम इंद्रियों का सूरज है। उसी के तेज से शरीर और उसकी इंद्रियाँ चल रही हैं। जब शरीर रूपी रथ पर चेतना रूपी राम आरूढ़ होकर इस का संचालन अपने हाथों में लेते हैं तभी वह सजीव होकर अभिव्यक्ति करता है। शरीर दथरथ है तो सारथी राम, शरीर शव है तो शिव (चेतना) राम…। राम से वियोग होते ही दशरथ का अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। इन दोनों का मिलन ही अनुभव और अभिव्यक्ति का, जड़ और चेतना का, परा और प्रकृति का मिलन है। अपने सारथी राम के बिना दशरथ उद्देश्यहीन है और दशरथ के बिना राम अभिव्यक्ति विहीन।

दशरथ पुत्र राम का परिचय हमें रामायण से मिलता है। रामायण एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमें दर्ज प्रसंग, पात्र और उनके प्रतिसाद सदियों से लोगों का मार्गदर्शन करते आ रहे हैं।यह गाथा बचपन से ही नानी-दादी की सुनाई कहानियों द्वारा, किताबों-कॉमिक्स द्वारा, टी.वी. सीरियलों, नाटकों, फिल्मोंद्वारा; जगह-जगह पर खेली जानेवाली रामलीला के मंचन द्वारा, जन-जन के दिल और दिमाग पर अंकित हो चुकी है। यही कारण है कि आज राम का नाम लेते ही उनका संपूर्ण चरित्र आँखों के सामने आ जाता है। जिससे लोग सकारात्मक ऊर्जा, शांति और आनंद महसूस करने लगते हैं।

कुछ लोग रामायण को ईश्वर के अवतार श्रीराम की लीला समझकर, श्रद्धा और भक्ति से निरंतर पढ़ते रहते हैं तो कुछ लोग इसे भारतीय इतिहास की महानगाथा समझकर वर्तमान में उसके चिन्हों और साक्ष्यों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह महान गाथा पढ़ने का एक और तरीका भी है। वह तरीका है ‘खोज’ का। यह खोज बाहरी साक्ष्यों या तथ्यों की नहीं है। यह आंतरिक खोज है।

वास्तव में रामायण मनुष्य के अलग-अलग मनोभावों का ताना-बाना है। इसकी हर घटना मनुष्य की आंतरिक स्थिति का ही प्रतिबिंब है। रामायण में चित्रित हर चरित्र मनुष्य के अंदर ही मौजूद है, जो समय-समय पर बाहर निकलता है। उदाहरण के तौर पर जब एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य के विरुद्ध किसी के कान भरता है तब वह मंथरा बन जाता है। यदि कोई मनुष्य किसी बाहरवाले की बातों में आकर, अपने शुभचिंतकों पर ही संदेह करने लगे तो उस वक्त वह कैकेयी है।

जब एक मनुष्य वासना और क्रोध जैसे विकारों के वशीभूत होकर, अपनी मर्यादा लाँघ जाए तो उस वक्त वह रावण है। जब मनुष्य की निष्ठा सत्य के पक्ष में इतनी गहरी हो जाए कि वह अपने प्रियजनों द्वारा किए जा रहे गलत कार्यों में अपना सहयोग या मूकस्वीकृति देना बंद कर दे और पूरे साहस के साथ उनका विरोध करने हेतु खड़ा हो जाए तो उसके भीतर विभीषण का अवतरण हुआ है।

जब राम (ईश्वर) किसी शरीर के माध्यम से अपना अनुभव कर, अपने गुणों को अभिव्यक्त करना चाहता है तो उस शरीर के, उस मनुष्य के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ घटती हैं, जो उसमें सत्य की प्यास जगाती हैं। तब उसके हृदय से सत्य प्राप्ति के लिए सच्ची प्रार्थना उठती है। यही प्रार्थना उसके जीवन में सत्य का अवतरण कराती है।

इसके विपरीत जब मनुष्य के अंदर रावण रूपी व्यक्ति (अहंकार) हावी हो जाता है तब उसके जीवन से सत्य अनुभव यानी राम चला जाता है। तब उसकी हालत वैसी ही हो जाती है, जैसे श्रीराम के जाने के बाद अयोध्या की हुई थी – दुःखी, उदास, सूनी-सूनी, उत्सव विहीन। क्योंकि सारी नकारात्मकता – दुःख, चिंता, डर, संशय, निराशा आदि अहंकार की ही पूँछ है, जो इसके पीछे –पीछे बँधी चली आती है। राम के जाते ही स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ और अलग माननेवाला ‘मैं’ (अहंकार) आ जाता है, जो मनुष्य जीवन को सूनी अयोध्या बना देता है।

जब मनुष्य को अपने जीवन में राम का महत्त्व पता चलता है और उसकी कमी महसूस होती है तब उस मनुष्य के जीवन में राम की वापसी के लिए प्रयास शुरू होते हैं। वह गुरु के मार्गदर्शन से अपने भीतर सत्य की ताकत को बढ़ाता है और रावण (विकार और अहंकार) से युद्ध कर, उसे परास्त कर देता है। जैसे ही मनुष्य के जीवन में राम (परमचेतना) वापस आते हैं, अयोध्या में उत्सव, उल्लास, उत्साह, प्रेम, आनंद, मौन का आगमन होता है। आप भी अपने राम के साथ प्रेम, आनंद, मौन का आनंद उठाएँ, यही शुभकामनाएँ।
यही प्राबोध है, यही सुमरती है, यही ज्ञान है, यही विज्ञान है।
भज मन 🙏ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

Sign Up to receive the latest updates and news

BHARAT DIARY,H.N. 149,Street: Ring RoadKilokari ,Opposite Maharani BaghNew Delhi,India . Pin Code 110014
Follow our social media
© 2007-2024 YAGPU COMMUNICATION PVT.LTD All rights reserved.