आध्यात्मिक एवं चित की संपन्नता
हमारा आध्यात्मिक एवं वैचारिक स्तर ही हमें किसी घटना से अधिक अथवा कम प्रभावित करता है। आंतरिक सूझ-बूझ के अभाव में एक वैभव संपन्न मनुष्य भी उतना ही दुःखी हो सकता है जितना एक निर्धन और आंतरिक पराकाष्ठा के फलस्वरूप एक निर्धन भी उतना ही सुखी हो सकता है जितना एक वैभव संपन्न। वाह्य सुख साधनों की समृद्धि से किसी की सफलता अथवा प्रसन्नता का मूल्यांकन करना संभव नहीं है और ना ही ये एक दूसरे के पूरक है।
जीवन में प्रायः संग्रह करने वालों को रोते और दानी एवं बांटने वालों को हँसते देखा गया है। सुख और दुःख का मापक हमारी आंतरिक प्रसन्नता ही है। किस व्यक्ति ने कितना पाया यह नहीं, अपितु कितनी तृप्ति की अनुभूति प्राप्त हुई और जीवन जी पूर्णता का अनुभव किया, यह महत्वपूर्ण है। आज बहुत लोग ऐसे हैं जो धन के कारण नहीं अपितु आपने मन के कारण परेशान हैं। सकारात्मक सोच के अभाव में जीवन बोझ बन जाता है। सत्संग से, भगवदाश्रय से और संतों की सन्निधि से ही जीवन में विवेकशीलता एवं आंतरिक समझ का उदय होता है।
मा कुरु धनजनयौवनगर्वं हरति निमेषात्कालः सर्वम्।
मायामयमिदमखिलं हित्वा ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा।।
ओ३म् सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥
भज मन
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः #sumarti