बसंत पंचमी
बसंत पंचमी माघ शुक्ल पंचमी को ज्ञान और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती जी के प्राकट्य दिवस के रूप मे जाना जाता है। अतः बसंत पंचमी को विशेष रूप से माता सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है। हाँलाकि ऋतुओं मे श्रेष्ठ बसंत ऋतु माघ के प्रतिपदा से ही प्रारम्भ हो जाती है, पर पंचमी के दिन लोगों का ध्यान इस ऋतु के लिए ज्यादा आकर्षित होता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में अपने बारे में कहते हुए कहा था – ऋतुओं में मैं बसंत हूँ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥
मौसम में आसानी से उपलब्ध होने वाले पीले फूलों को माँ सरस्वती को चढ़ाए जाने की महिमा है। यह त्योहार माँ सरस्वती को समर्पित होने के कारण, इस दिन पाठ्य सामिग्रि जैसे कलम और कॉपी की पूजा करनी चाहिए।
इस दिन निम्न लिखित कार्यों को करना बेहद शुभ माना जाता है जैसे, मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा, घर की नींव रखना, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार शुरू करना आदि।
इस दिन नवजात बच्चे को पहला निवाला खिलाया जा सकता है और माना जाता है कि बच्चे की जिह्वा पर शहद से ॐ बनाने से बच्चा ज्ञानी बनता है।
इस दिन कामदेव का अवतरण भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न रूप में हुआ था। पीला रंग कामदेव के धनुष का रंग है अतः वसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने की प्रचलित प्रथा भी है।
वसंत पंचमी के ही दिन प्रभु श्रीराम ने शबरी के बेर उनके आश्रम में खाए थे, इसलिए इस दिन भगवान को बेर का भोग लगाया जाता है।
ओ३म् सर्वे भवन्तु सुखिनः ।
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥
भज मन
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः