मुण्डकोपनिषद्

मुण्डकोपनिषद्

मुण्डकोपनिषद् एक अति महत्वपूर्ण उपनिषद है जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है। यह उपनिषद तीन खण्डों में विभाजित है, प्रत्येक में दो अध्याय होते हैं। आइए, एक कहानी के माध्यम से मुण्डकोपनिषद के श्लोकों के अर्थ और आध्यात्मिक मार्गदर्शन को समझने का प्रयास करें।

प्रथम मुण्डक : प्रथम खण्ड
पुराने समय की बात है, एक महान ऋषि अंगिरा अपने शिष्यों को ज्ञान दे रहे थे। एक दिन, एक विद्वान ब्रह्मज्ञानी, शौनक, ऋषि अंगिरा के पास आया और उसने प्रश्न किया, “हे भगवन्, वह कौन-सा ज्ञान है जिससे समस्त ज्ञान की प्राप्ति होती है?”

ऋषि अंगिरा ने उत्तर दिया, “द्विविधं वेदितव्यं, परा चापरा च।” अर्थात, दो प्रकार के ज्ञान होते हैं: परा और अपरा। अपरा विद्या वेदों, वेदांगों और अन्य शास्त्रों का ज्ञान है। परा विद्या वह है जिससे ब्रह्म का ज्ञान होता है।

द्वितीय खण्ड : ऋषि अंगिरा ने आगे बताया, “ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठा, यस्या सर्वे समुत्पद्यन्ते।” ब्रह्म वह आधार है जिससे सब उत्पन्न होते हैं और जिसमें सब अंतर्धान हो जाते हैं। उसे जानना ही परम ज्ञान है।

द्वितीय मुण्डक : प्रथम खण्ड
शौनक ने पूछा, “हे ऋषि, वह ब्रह्म कैसे जाना जा सकता है?” ऋषि ने उत्तर दिया, “सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष आत्मा।” सत्य और तपस्या से आत्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।

द्वितीय खण्ड: ऋषि ने बताया, “तस्मिन् दृष्टे परावरे।” ब्रह्म को जानने पर सभी भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो जाते हैं। यह ज्ञान केवल गुरु की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है।

तृतीय मुण्डक : प्रथम खण्ड
ऋषि ने बताया कि आत्मा को जानने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करना आवश्यक है। “ध्यानयोगाद्वैदिकं सुषुप्तं”। ध्यान और योग से ही ब्रह्म का साक्षात्कार हो सकता है।

द्वितीय खण्ड:
अंत में, ऋषि ने कहा, “भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः।” जब आत्मा का साक्षात्कार होता है, तो हृदय के सभी गांठे खुल जाती हैं और सभी संदेह समाप्त हो जाते हैं।

इस प्रकार, शौनक ने ऋषि अंगिरा से आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने सच्चे ज्ञान की महत्ता को समझा और अपने जीवन में उसे अपनाया। मुण्डकोपनिषद हमें यह सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वह है जो हमें ब्रह्म की ओर ले जाता है। यह ज्ञान किसी भी बाहरी साधन से नहीं, बल्कि आत्म-अन्वेषण और गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।

उपसंहार : इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि मुण्डकोपनिषद केवल शाब्दिक ज्ञान नहीं है, बल्कि एक जीवंत शिक्षण है जो हमें आत्मा की ओर ले जाता है। इस उपनिषद के श्लोक हमें सत्य, तपस्या, ध्यान और गुरु की महत्ता को समझने का मार्गदर्शन देते हैं। यह हमें दिखाता है कि ब्रह्म का ज्ञान ही सच्चा और सर्वोच्च ज्ञान है, जिससे समस्त संशयों का अंत होता है और हृदय के सभी गांठे खुल जाती हैं।

मुण्डकोपनिषद की यह शिक्षा हमें आध्यात्मिक मार्ग पर चलने और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति की प्रेरणा देती है।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, जिसके लिये यह मानव देह प्राप्त हुई है।
भज मन 🙏
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

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