“वैराग्य”
आध्यात्म में, “वैराग्य” शब्द एक महत्वपूर्ण अर्थ परिभाषित करता है। यह एक आध्यात्मिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति का मन पदार्थों के आकर्षण से परे हो जाता है। अर्थात्, जब भोगने योग्य पदार्थों की उपस्थिति में भी व्यक्ति को उसके आकर्षण का अहसास नहीं होता, तब उसे वैराग्य की स्थिति कही जाती है।
वैराग्य की यह स्थिति आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक होती है। यह उस आध्यात्मिक यात्रा का प्रारम्भिक स्तर होता है जिसमें व्यक्ति बाह्य विषयों के मोह से मुक्ति प्राप्त करता है और अंतर्मुखी ध्यान में लीन होता है।
वैराग्य की यह स्थिति व्यक्ति को मानवीय और अध्यात्मिक मूल्यों की प्राथमिकता को समझने में मदद करती है। यह उसे सांसारिक आकर्षणों की अहम भूमिका से मुक्त करती है और उसे आत्मा के साथ संगम का अनुभव करने की दिशा में ले जाती है।
वैराग्य की यह स्थिति हमें विश्वास दिलाती है कि सच्ची सुख और आनंद केवल आत्मा में ही मिलते हैं, और बाह्य विषयों के साथ मानसिक संतुष्टि का अन्त होता है। इसलिए, वैराग्य की स्थिति को जानना हमें आत्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर करता है।
जब हमारे मन में अहं भाव का उदय नहीं होता, यानी कि हमारा अहंकार नहीं उत्पन्न होता, तो वहाँ हमें ज्ञान की परम स्थिति की जानकारी होनी चाहिए। यह एक ऊँचे स्तर की आध्यात्मिक अवस्था है जिसमें हमारा मन अपने आत्मा के अतीत और भविष्य के प्रकाश को पहचानता है।
अहं भाव का अभाव होना यह मानव के निजत्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। यह हमें अपने निजी भावनाओं और इच्छाओं से परे करता है, और हमें आत्मा के साथ एकीभाव में ले जाता है।
ज्ञान की परम स्थिति की जानकारी होना हमें संसार के मायावी मोह से मुक्त करता है और हमें आत्मा के साथ अटूट जोड़ देता है। यह हमें संज्ञान का अनुभव कराता है, जिसमें हम आत्मा के साथ एकत्रित होते हैं और हमें सच्ची प्रासंगिकता की अनुभूति होती है।
इस प्रकार, अहं भाव के अभाव में हमें ज्ञान की परम स्थिति की ओर बढ़ने की सीख मिलती है, जो हमें आत्मिक स्वतंत्रता और आनंद की अव्यापक अनुभूति में ले जाती है।
यही इस जीवन यात्रा का सार हैं, यही प्राबोध है, यही सुमरती है, यही ज्ञान है, यही विज्ञान है।
भज मन 🙏ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः #sumarti