मांडूक्य उपनिषद की कथा

मांडूक्य उपनिषद की कथा

बहुत समय पहले, भारत के एक पवित्र वन में, ऋषि मांडूक्य और उनके शिष्य निवास करते थे। ऋषि मांडूक्य, जो अपने ज्ञान और योग साधना के लिए प्रसिद्ध थे, अपने शिष्यों को ब्रह्म ज्ञान की शिक्षा देते थे। उनकी प्रमुख शिक्षा मांडूक्य उपनिषद के माध्यम से होती थी, जो परमात्मा और आत्मा के अद्वैत स्वरूप को समझाने का एक अनुपम ग्रंथ है।

ऋषि मांडूक्य ने अपने शिष्यों को समझाया कि “ॐ” ब्रह्मांड का मूल मंत्र है। उन्होंने कहा, “ॐ सभी ध्वनियों का स्रोत है और इसे तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है: अ, उ, म। यह त्रिमात्रिक ध्वनि ही सत्य की अनुभूति का साधन है।” शिष्यों ने मंत्र के महत्व को समझा और अपने ध्यान में इसे जपना शुरू किया।

ऋषि ने आगे बताया, “ॐ के तीन हिस्से सृष्टि के तीन अवस्थाओं का प्रतीक हैं: जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति। जागृत अवस्था में हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से संसार का अनुभव करते हैं।” शिष्य गहरे ध्यान में डूब गए और उन्होंने अपने जागृत अवस्था के अनुभवों का मंथन करना शुरू किया।

ऋषि मांडूक्य ने कहा, “स्वप्न अवस्था में हम अपने मन के निर्मित संसार में विचरण करते हैं। यह हमारे अवचेतन मन की क्रियाओं का परिणाम होता है।” शिष्यों ने अपने सपनों को समझने की कोशिश की और देखा कि उनके मन की गहराई में कितनी रहस्यमयी बातें छिपी हैं।

ऋषि ने समझाया, “सुषुप्ति अवस्था में मन और इंद्रियां दोनों ही विश्राम में होते हैं। इस अवस्था में आत्मा अपनी मूल स्थिति में होती है, जहाँ कोई द्वैत नहीं होता।” शिष्य इस गहरे ज्ञान से प्रभावित हुए और उन्होंने सुषुप्ति अवस्था के महत्व को समझा।

ऋषि ने कहा, “इन तीन अवस्थाओं के परे एक चौथी अवस्था है, जिसे तुरीया कहते हैं। तुरीया वह अवस्था है जहाँ आत्मा और ब्रह्म एक हो जाते हैं। यह पूर्णता और शांति की अवस्था है।” शिष्य इस रहस्य को जानने के लिए उत्सुक हो गए और तुरीया की प्राप्ति के लिए अधिक ध्यान करने लगे।

ऋषि मांडूक्य ने तुरीया अवस्था की विशेषता को और विस्तार से बताते हुए कहा, “यह अवस्था सभी द्वैत भावनाओं से मुक्त होती है। यहाँ कोई जन्म, मरण, सुख, दुख नहीं होता।” शिष्य इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारने के लिए और भी गहन साधना करने लगे।

ऋषि ने आगे कहा, “ॐ का ध्यान करते हुए तुरीया अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। यह अवस्था हमारी आत्मा को ब्रह्म से जोड़ती है और हमें अद्वैत सत्य की अनुभूति कराती है।” शिष्य अपनी साधना में और भी स्थिर हो गए और तुरीया अवस्था की प्राप्ति का प्रयास करने लगे।

ऋषि ने बताया, “जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थाओं को समझने और उनका अनुभव करने के बाद ही हम तुरीया को समझ सकते हैं।” शिष्य इस प्रक्रिया को समझने के लिए अपने ध्यान में और भी गहराई में जाने लगे।

ऋषि ने कहा, “तुरीया अवस्था में पहुँचने के लिए हमें अपने मन और इंद्रियों पर विजय प्राप्त करनी होगी।” शिष्यों ने अपने मन और इंद्रियों को संयमित करने के लिए कठिन साधनाएँ शुरू कर दीं।

ऋषि मांडूक्य ने अपने शिष्यों को प्रेरित करते हुए कहा, “तुरीया अवस्था को प्राप्त करने के लिए धैर्य, तपस्या और श्रद्धा आवश्यक हैं।” शिष्यों ने अपने गुरु के मार्गदर्शन में धैर्यपूर्वक अपनी साधना जारी रखी।

ऋषि ने आगे कहा, “जब हम तुरीया अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं, तब हमें आत्मा का साक्षात्कार होता है। यह साक्षात्कार हमें ब्रह्म से एकाकार करता है।” शिष्य इस उच्चतम सत्य को जानने के लिए और भी उत्सुक हो गए।

अंत में, ऋषि मांडूक्य ने कहा, “ॐ के माध्यम से तुरीया अवस्था को प्राप्त करना ही आत्म-साक्षात्कार का मार्ग है। यह हमें जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देता है और हमें अनन्त शांति की अनुभूति कराता है।” शिष्यों ने अपने गुरु के उपदेशों को हृदय से स्वीकार किया और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।

इस प्रकार, ऋषि मांडूक्य की शिक्षा से शिष्यों ने आत्मा और ब्रह्म के अद्वैत स्वरूप को समझा और तुरीया अवस्था की प्राप्ति का मार्ग अपनाया। मांडूक्य उपनिषद का यह ज्ञान आज भी हमें आत्म-साक्षात्कार और शांति की ओर प्रेरित करता है।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, जिसके लिये यह मानव देह प्राप्त हुई है।
भज मन 🙏
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

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