भाई दूज
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की संपन्नता के लिए कामना करती हैं।
भाई दूज के दिन सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमदेव को अपने घर भोजन के लिए बुलाया था। जिससे उस दिन नरक के जीवों को यातनाओं से मुक्ति मिल सके। अपने पापों से मुक्त होकर वे लोग सभी बंधनों से मुक्त हो गए। इसके बाद उन सभी ने मिलकर एक पर्व का शुभआरंभ किया। जिससे यमलोक के राज्य को सुख पहुंच सके। इस तिथि जो यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है। जो तीनों लोकों में विख्यात है। इसी तिथि के दिन यमुना ने अपने भाई को भोजन कराया था। जो भी भाई इस दिन अपनी बहन के हाथ का भोजन करता है तो उसके घर में कभी भी अन्न की कभी कमी नहीं होती और साथ ही धन की प्राप्ति भी होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सूर्योदय से पहले यमदेव की पूजा करने के बाद यमुना नदी में स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से उस मनुष्य को यमलोक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
भाई दूज की कथा
एक बार सूर्यदेव और छाया की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को प्रेमपूर्वक उनके घर आने और भोजन करने का निमंत्रण देती है कि वे उनके घर आएं और भोजन ग्रहण करें। लेकिन यमराज अपनी व्यस्तता के कारण यमुना की बात को टाल देते हैं। लेकिन कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज यमुना के घर अचानक पहुंच जाते हैं।
अपने भाई को दरवाजे पर खड़ा देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। यमुना अपने भाई का स्वागत सत्कार करती हैं और प्रेमपूर्वक उन्हें भोजन कराती हैं। यमराज अपनी बहन का स्नेह और प्रेम देखकर भाव- विभोर हो गए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने अपने भाई से वर की रूप में यह मांगा कि हर वर्ष वे इसी दिन वह उनके यहां भोजन के करने के लिए आएं और जो भी बहन इस दिन अपने भाई का टीका करके उसे भोजन खिलाए उसे आपसे किसी भी प्रकार का भय न हो। जिसके बाद यमराज यमुना को ‘तथास्तु’ कहकर यमलोक लौट गए।
उसी दिन सभी बहने अपने भाई का तिलक करके उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराती हैं। जिससे भाई और बहन को यमदेव का किसी भी प्रकार का भय नही होता।
भज मन
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः