ज्ञान की यात्रा

ज्ञान की यात्रा

॥ केनोपनिषद् की कथा – ज्ञान की यात्रा ॥
प्राचीन काल में, हिमालय की गोद में स्थित एक शांत आश्रम में, एक उत्साही ब्रह्मचारी, आरुणि, अपने गुरु पिप्पलाद के सानिध्य में अध्ययन कर रहा था। आरुणि को ब्रह्मज्ञान की अत्यधिक जिज्ञासा थी, और वह दिन-रात वेदों और उपनिषदों के गूढ़ रहस्यों को समझने में लीन रहता था।
एक दिन, आरुणि ने अपने गुरु से पूछा, “गुरुदेव, केनोपनिषद् में वर्णित ‘केन’ का अर्थ क्या है? यह ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है?”

गुरु पिप्पलाद ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, यह प्रश्न केवल शब्दों का नहीं, अपितु आत्मा का प्रश्न है। केनोपनिषद् के श्लोक हमें बताते हैं कि इस प्रश्न का उत्तर भीतर ही छिपा है।”

गुरु ने आरुणि को बताया, “यह प्रश्न हमें हमारे मन, प्राण, वाणी, दृष्टि और श्रवण के मूल को समझने के लिए प्रेरित करता है।”

गुरु ने कहा, “जो ब्रह्मज्ञान को जान लेता है, वह श्रोत्र का श्रोत्र, मन का मन, वाणी का वाणी, प्राण का प्राण और दृष्टि का दृष्टि होता है। ऐसे ज्ञानी इस लोक को छोड़ अमर हो जाते हैं।”

आरुणि की आँखों में ज्ञान की ज्वाला जल उठी। उसने आगे पूछा, “गुरुदेव, हम इस ब्रह्म को कैसे जान सकते हैं?”

गुरु पिप्पलाद ने समझाया, “यह ब्रह्म न तो हमारी दृष्टि से देखा जा सकता है, न वाणी से वर्णित किया जा सकता है और न ही मन से सोचा जा सकता है। यह हमारी बुद्धि की सीमा से परे है।”

गुरु ने आगे कहा, “यह ब्रह्म ज्ञात और अज्ञात के बीच स्थित है। प्राचीन ऋषियों ने इसे इसी प्रकार वर्णित किया है।”

आरुणि ने गुरु से निवेदन किया, “गुरुदेव, कृपया मुझे और ज्ञान दें।”

गुरु ने कहा, “जिससे वाणी उत्पन्न होती है, लेकिन जो वाणी से वर्णित नहीं किया जा सकता, वही ब्रह्म है। इसे जानो और समझो।”

आरुणि ने इस ज्ञान को आत्मसात किया और ध्यान में लीन हो गया। समय बीतता गया, और उसकी तपस्या और अध्ययन से उसने ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर लिया।

आरुणि ने केनोपनिषद् के श्लोकों के माध्यम से यह सीखा कि ब्रह्म को मन, वाणी और इंद्रियों से परे अनुभव किया जा सकता है। यह आत्मज्ञान ही सच्चा ज्ञान है, जो उसे मोक्ष की ओर ले जाता है।

इस प्रकार, आरुणि ने केनोपनिषद् के श्लोकों के मार्गदर्शन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया और अपने जीवन को सार्थक बनाया।

यह कहानी केनोपनिषद् के माध्यम से आत्मज्ञान की यात्रा को दर्शाती है। केनोपनिषद् के प्रत्येक श्लोक हमें ब्रह्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है और हमारे भीतर छिपे सत्य को जानने के लिए प्रेरित करता है।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, जिसके लिये यह मानव देह प्राप्त हुई है।
भज मन 🙏
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

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