अष्टांग योग और इसके अंग।
अष्टांग योग
- यम , नैतिक प्रतिबंध
- नियम , अनुशासन
- आसन , शारीरिक मुद्राएं
- प्राणायाम , सांस और ऊर्जा पर नियंत्रण
- प्रत्याहार (इन्द्रियों का वशीकरण )
- धारणा ( एकाग्रता )
- ध्यान ( साधना )
- समाधि ( विषय और वस्तु के बीच मिलन की आनंदमय स्थिति )
तत्त्वज्ञान सहित यम-नियम आदि को अष्टांग योग कहा जाता है।
1.यम (नैतिक प्रतिबंध)
सर्दी-गर्मी, आहार एवं निद्रा पर विजय प्राप्त करना, सर्वदा शान्त रहना और निश्चल होकर इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना, ये सभी यम है।
2.नियम ( अनुशासन )
गुरु भक्ति, सत्य मार्ग में अनुरक्ति, यथालाभ-सन्तोष, एकान्त निवास, अनासक्ति, मनोनिवृत्ति, फल की इच्छा न करना और वैराग्य भाव-ये सभी नियम है।
3.आसन ( शारीरिक मुद्राएं )
सुखासन वृत्ति (सुखपूर्वक एक वृत्ति में दीर्घकाल तक स्थित रहना) और चिरनिवास (बिना प्रयास के चिरकाल तक एक स्थिति में रहना)-ये आसन के नियम है।
4.प्राणायाम ( सांस और ऊर्जा पर नियंत्रण )
सोलह मात्राओं द्वारा पूरक, चौंसठ मात्राओं द्वारा कुम्भक और बत्तीस मात्राओं द्वारा रेचक करने को प्राणायाम कहते है।
5.प्रत्याहार (इन्द्रियों का वशीकरण )
इन्द्रियों के विषयों से मन का निरोध करना प्रत्याहार कहलाता है।
6.धारणा ( एकाग्रता )
विषयों से निरोधित मन को चैतन्य सत्ता में स्थित करना धारणा है।
7.ध्यान ( साधना )
सभी शरीरों में एक ही चैतन्य तत्त्व विद्यमान है, इसी एकतानता (निरन्तर चिन्तन) को ध्यान कहा गया है
8.समाधि ( विषय और वस्तु के बीच मिलन की आनंदमय स्थिति )
और ध्यान को भी विस्मृत कर देना (भूल जाना) समाधि है।
इस प्रकार ये सभी सूक्ष्म अङ्ग हैं, जो इन्हें इस प्रकार जानता है,वह मुक्ति का अधिकारी होता है।
भज मन
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः