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छान्दोग्योपनिषद् का प्रथम अध्याय: कथा

छान्दोग्योपनिषद् का प्रथम अध्याय: कथा


महान ऋषि उद्दालक भारतीय वैदिक युग के एक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ऋषि थे, जिनका उल्लेख कई उपनिषदों और वेदांत शास्त्रों में मिलता है। उन्होंने भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में अपनी अनूठी छाप छोड़ी है। आइए, उनके जीवन और शिक्षाओं को विस्तृत रूप से समझें।

ऋषि उद्दालक का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम उद्दालक अरुणि था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता अरुणि से प्राप्त की थी। उद्दालक ने वेदों, उपनिषदों और विभिन्न शास्त्रों का गहन अध्ययन किया और आध्यात्मिक ज्ञान में निपुणता प्राप्त की।

उद्दालक ऋषि ने अपनी आध्यात्मिक साधना और तपस्या के माध्यम से गहन ज्ञान और अनुभूतियों को प्राप्त किया। वे अद्वितीय गुरु थे, जिन्होंने आत्मा, ब्रह्म, और जगत के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान प्राप्त किया। उनका मुख्य उद्देश्य ब्रह्म का साक्षात्कार करना और इसे अपने शिष्यों को सिखाना था।

उद्दालक ऋषि के कई प्रसिद्ध शिष्य थे, जिनमें उनका पुत्र श्वेतकेतु प्रमुख था। उद्दालक ने श्वेतकेतु को आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान प्रदान किया, जो बाद में छान्दोग्य उपनिषद में वर्णित है। उद्दालक ने अपने शिष्यों को सिखाया कि ब्रह्म ही समस्त सृष्टि का मूल है और आत्मा तथा ब्रह्म एक ही हैं।

उद्दालक का छान्दोग्य उपनिषद में महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें उनके द्वारा दिए गए उपदेश और शिक्षाएँ वर्णित हैं, जो आत्मा और ब्रह्म के संबंध को समझाते हैं। उन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतु को “तत्त्वमसि” (तू वह है) का महान उपदेश दिया, जो अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत है। यह उपदेश आत्मा और ब्रह्म की एकता का प्रतीक है।

उद्दालक ऋषि की शिक्षाएँ आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनकी शिक्षाएँ यह बताती हैं कि आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है और समस्त सृष्टि ब्रह्म के ही रूप में है। उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि हमें अपनी आत्मा की शुद्धता को पहचानना चाहिए और ब्रह्म के साथ अपनी एकता का अनुभव करना चाहिए।
उद्दालक ऋषि की शिक्षाएँ और उपदेश आज भी वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और अनुभूतियाँ अनेक लोगों को प्रेरित करती हैं और उन्हें आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करती हैं। उनकी शिक्षाएँ भारतीय आध्यात्मिकता और दर्शन का अभिन्न अंग हैं।

महान ऋषि उद्दालक एक अद्वितीय गुरु और दार्शनिक थे, जिनकी शिक्षाएँ आत्मा और ब्रह्म की एकता पर आधारित थीं। उनके जीवन और शिक्षाएँ आज भी हमें आत्मज्ञान और ब्रह्म साक्षात्कार की दिशा में प्रेरित करती हैं। उद्दालक ऋषि का योगदान भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता में अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनकी शिक्षाएँ सदैव हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी।

उद्गीथ का महत्त्व :
बहुत समय पहले, एक महान ऋषि थे जिनका नाम उद्दालक था। वह अपने पुत्र श्वेतकेतु के साथ एक पवित्र वन में निवास करते थे। उद्दालक ऋषि ने अपने पुत्र को वेदों और उपनिषदों का गूढ़ ज्ञान सिखाने का निर्णय लिया। एक दिन, उद्दालक ने श्वेतकेतु को अपने पास बुलाया और कहा, “हे पुत्र, ओम् (उद्गीथ) की महिमा को समझो। यह ओम् ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो यह हमें ब्रह्म के साथ जोड़ता है और हमारे अंदर की दिव्यता को जाग्रत करता है। ओम् शब्द में वह शक्ति है जो हमें संसार के माया जाल से मुक्त कराकर आत्मा की शुद्धता का अनुभव कराता है।”

पृथ्वी और उद्गीथ :
उद्दालक ने श्वेतकेतु को समझाया, “हे पुत्र, यह पृथ्वी, जो हमें धारण करती है, वह भी ओम् का ही रूप है। पृथ्वी की स्थिरता, उसकी सहनशीलता और उसकी पोषण करने की शक्ति ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम पृथ्वी की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। इस प्रकार, ओम् का उच्चारण हमें स्थिरता, सहनशीलता और शक्ति प्रदान करता है। यह हमें धरती माँ की दिव्यता का अनुभव कराता है और हमें सिखाता है कि हम अपनी जीवन यात्रा में धैर्य और संयम का पालन करें।”

आकाश और उद्गीथ:
उद्दालक ने आगे कहा, “हे पुत्र, यह आकाश, जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है, वह भी ओम् का ही रूप है। आकाश की व्यापकता, उसकी अनंतता और उसकी शांति ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम आकाश की असीमितता और उसकी शांति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी आकाश की तरह अनंत और शांति से भरपूर है। आकाश की तरह, हमारी आत्मा भी सभी बाधाओं और सीमाओं से परे है।”

अग्नि और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह अग्नि, जो हमें प्रकाश और गर्मी देती है, वह भी ओम् का ही रूप है। अग्नि की शक्ति, उसकी प्रकाशमयता और उसकी ऊर्जा ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम अग्नि की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें जीवन में प्रकाश और ऊर्जा की महत्ता सिखाता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में ज्ञान और ऊर्जा का संचार करें और अज्ञानता के अंधकार को दूर करें।”

जल और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह जल, जो हमें जीवन प्रदान करता है, वह भी ओम् का ही रूप है। जल की तरलता, उसकी शुद्धता और उसकी जीवनदायिनी शक्ति ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम जल की शुद्धता और उसकी जीवनदायिनी शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी जल की तरह शुद्ध और तरल है। जल की तरह, हमारी आत्मा भी जीवनदायिनी है और सभी जीवों के साथ एक अटूट संबंध रखती है।”

वायु और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह वायु, जो हमें सांस देती है, वह भी ओम् का ही रूप है। वायु की जीवनदायिनी शक्ति, उसकी गति और उसकी स्वतंत्रता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम वायु की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी वायु की तरह स्वतंत्र और जीवनदायिनी है। वायु की तरह, हमारी आत्मा भी सभी जीवों के साथ एक अदृश्य बंधन में बंधी हुई है।”

सूर्य और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह सूर्य, जो हमें प्रकाश और ऊर्जा देता है, वह भी ओम् का ही रूप है। सूर्य की ऊर्जा, उसकी असीमित शक्ति और उसकी दिव्यता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम सूर्य की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी सूर्य की तरह ऊर्जा और दिव्यता से भरपूर है। सूर्य की तरह, हमारी आत्मा भी अंधकार को दूर करने वाली और जीवनदायिनी है।”

चन्द्रमा और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह चन्द्रमा, जो हमें शीतलता और शांति देता है, वह भी ओम् का ही रूप है। चन्द्रमा की शीतलता, उसकी शांति और उसकी दिव्यता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम चन्द्रमा की शांति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी चन्द्रमा की तरह शीतल और शांति से भरपूर है। चन्द्रमा की तरह, हमारी आत्मा भी हमारी आंतरिक अशांति को शांत करती है और हमें मानसिक संतुलन प्रदान करती है।”

तारे और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, ये तारे, जो हमें रात में प्रकाश देते हैं, वे भी ओम् का ही रूप हैं। तारों की चमक, उनकी अनंतता और उनकी दिव्यता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम तारों की अनंतता और उनकी चमक को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी तारों की तरह अनंत और चमक से भरपूर है। तारों की तरह, हमारी आत्मा भी अंधकार में मार्गदर्शन करती है और हमें सही दिशा दिखाती है।”

वर्षा और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह वर्षा, जो हमें जीवनदायिनी जल प्रदान करती है, वह भी ओम् का ही रूप है। वर्षा की जीवनदायिनी शक्ति, उसकी तरलता और उसकी शुद्धता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम वर्षा की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी वर्षा की तरह शुद्ध और जीवनदायिनी है। वर्षा की तरह, हमारी आत्मा भी हमारी आंतरिक अशुद्धियों को धो देती है और हमें नई ऊर्जा और जीवन प्रदान करती है।”

दिशा और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, ये दिशाएँ, जो हमें मार्ग दिखाती हैं, वे भी ओम् का ही रूप हैं। दिशाओं की व्यापकता, उनकी दिशा-निर्देशित शक्ति और उनकी असीमितता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम दिशाओं की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी दिशाओं की तरह व्यापक और दिशा-निर्देशित है। दिशाओं की तरह, हमारी आत्मा भी हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।”

मनुष्य और उद्गीथ:
उद्दालक ने कहा, “हे पुत्र, यह मनुष्य, जो इस संसार में रहता है, वह भी ओम् का ही रूप है। मनुष्य की जीवनी शक्ति, उसकी आध्यात्मिकता और उसकी दिव्यता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम मनुष्य की आध्यात्मिकता को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी मनुष्य की तरह दिव्यता से भरपूर है। मनुष्य की तरह, हमारी आत्मा भी सभी जीवों के साथ एक गहरा संबंध रखती है और हमें अपनी आत्मा की दिव्यता का अनुभव कराती है।”

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और उद्गीथ:
उद्दालक ने अंत में कहा, “हे पुत्र, यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, जो हमें घेरे हुए है, वह भी ओम् का ही रूप है। ब्रह्माण्ड की असीमितता, उसकी शक्ति और उसकी दिव्यता ओम् में समाहित है। जब हम ओम् का उच्चारण करते हैं, तो हम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं। ओम् का उच्चारण हमें यह सिखाता है कि हमारी आत्मा भी ब्रह्माण्ड की तरह असीमित और दिव्यता से भरपूर है। ब्रह्मा ण्ड की तरह, हमारी आत्मा भी सभी जीवों के साथ एक अटूट बंधन में बंधी हुई है और हमें ब्रह्म के साथ जोड़ती है।”

इस प्रकार, उद्दालक ऋषि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ओम् की महिमा और उसकी व्यापकता का गूढ़ ज्ञान कराया। श्वेतकेतु ने अपने पिता की शिक्षाओं को आत्मसात किया और वेदों के ज्ञान में प्रवीण हो गए। छान्दोग्योपनिषद् का प्रथम अध्याय हमें यह सिखाता है कि ओम् सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति और उसकी दिव्यता का प्रतीक है। ओम् का उच्चारण हमें ब्रह्म के साथ जोड़ता है और हमें उसकी असीमितता का अनुभव कराता है। इस गूढ़ ज्ञान के माध्यम से, हम जीवन के सभी पहलुओं में ओम् की महिमा को पहचान सकते हैं और आत्मा की शुद्धता और दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, जिसके लिये यह मानव देह प्राप्त हुई है।

भज मन 🙏ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

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