भगवान श्री कृष्ण के सिरदर्द की कहानी |
द्वापर युग मे यह चर्चा थी की राधा ही भगवान कृष्ण की सबसे बडी भक्त है. पर इस बात से एक व्यक्ति सहमत नहीं थे और वह थे नारद मुनी.
वह अपने आपको ही भगवान कृष्ण का सबसे बडा भक्त मानते थे. पर देवताओं में राधा रानी के विषय में चर्चा सुनकर उन्हें जलन महसूस होने लगी थी. नारद मुनी के स्वभाव से भगवान कृष्ण भी अच्छी तरह अवगत थे.
एक दिन नारद मुनी कृष्ण भगवान से मिलने. द्वारिकापुरी गए थे. उन्हें आता देख भगवान श्री कृष्ण अपना सिर पकडकर बैठे गए. मुनीवर ने उन्हें देखते ही पूछा. क्या हुआ प्रभु आप यूं सिर पकड़कर क्यों बैठे है?
उसपर द्वारिकाधीश ने उत्तर दिया. मुनिवर आज हमें सिर में बुहत पीडा हो रही है. नारद बोले तो प्रभु इस पीडा को मिटने का क्या कोई उपाय है? . कृष्ण ने कहा हां उपाय तो है.
अगर मेरा सबसे बडा भक्त अपने चरण धोकर. उसका चरण अमृत मुझे पिलाएगा. तो मेरा सिरदर्द पल भर में ठीक हो जायेगा. कृष्ण के मुख से यह उपाय सुनकर कुछ पल के लिए मुनिवर सोच में पड गए.
की हूं तो मैं ही सबसे बडा कृष्ण भक्त. लेकिन अगर मैं अपने पैर धोकर उसका चरण अमृत प्रभु को पिलाऊंगा. तो मुझे नरक जाने जीतन महापाप लगेगा. परन्तु राधा को भी तो सब कृष्ण का बडा भक्त मानते है.
इतना सोचने के बाद भगवान कृष्ण-से आज्ञा लेकर. नारद तुरंत राधारानी के महल में जा पहुंचे और उन्हें प्रभु के सिर में हो रही पीडा एवं उसके उपाय के बारे में वृतांत सुनाया
वह सुनकर राधा रानी ने एक क्षण का भी विलंब ना करते हुए. अपने चरण धोकर उसका अमृत एक कटोरी में नारद मुने के हाथ में लाकर दिया और कहा मुनिवर मैं नहीं जानती की मैं भगवान कृष्ण की कितनी बडी भक्त हूं.
पर में अपने ईश्वर आराध्य को पीडा में नहीं देख सकती. राधा के मुख से वह सच्चे भक्ति भाव के शब्द सुनकर. नारद मुनी की आंखे खुल गई. और वह समझ गए की राधाराणी ही कृष्ण की सबसे बडी भक्त है और प्रभु श्री कृष्ण ने यह लीला. मुझे समझाने के लिए रची थी|
जब नारद मुनी राधा के पास से वापस आ रहे थे, तो उनके मुख से केवल राधा के नाम की ही धुन सुनाई दे रही थी।
जब वे श्री कृष्ण के पास पहुंचे, तो देखा कि श्री कृष्ण उनको देखकर केवल मुस्कुराए जा रहे हैं और नारद मुनी ने भी सारी बात को समझ कर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा “राधे-राधे।”