अष्टांग योग

अष्टांग योग

अष्टांग योग (यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार ध्यान धारणा और समाधि) में यम (अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) के बाद दूसरा नियम होता है नियम भी पांच (शौच संतोष तप स्वाध्याय और ईश्वरधन या ईश्वरप्रणिधान) होते है नियम में सर्व प्रथम शौच (शुद्धता या सुचिता) होता है शौच(शुद्धता) भी दो प्रकार से होती है बाह्य शौच शुद्धि अर्थात मिट्टी और जल से शरीर शुद्धि बाह्य शुद्धि और अंतर्मन से भाव शुद्धि अभ्यंतर शौच( शुद्धि ) होती है नियम में दूसरा स्थान होता है संतोष का प्रारब्ध अर्थात भाग्य और धर्म सम्मत कर्तव्य कर्म के फलस्वरूप जो प्राप्त हो उसी से तृप्त हो सुखी रहना संतोष कहा जाता है तीसरा स्थान है तप का मन और इन्द्रियों को एकाग्र करने की क्रिया को तप कहा जाता है तप तीन प्रकार क होता है मानसिक (मन में विचारने से मन मे नाम और मंत्र ध्यान करना) वाचिक (वाणी द्वारा बोलने या अभिव्यक्त करने से जैसे नाम और मंत्र जप ) और शारीरिक अर्थात शरीर द्वारा करने जैसे भगवान की मूर्ति पुजा शृंगार अनुष्ठान यज्ञ हवन आदि चौथा नियम स्वाध्याय अर्थात ॐ(ओङ्कार स्वरूप) स्वरूप ईश्वर, आत्मा, परमात्मा, अध्यात्म योग तथा धर्म, कर्म, कर्तव्य, न्याय और नीति की व्याख्या करने वाले वेद पुराण उपनिषद आदि धर्म शास्त्रों का पठन पाठन अध्ययन अध्यापन प्रचार प्रसार करना स्वाध्याय कहा जाता है तथा ईश्वराधन ईश्वरप्रणिधान श्रीहरि विष्णु सदा शिव महेश्वर शक्ति वासुदेव कृष्ण श्रीराम ब्रह्म आदि देवी देवताओं पर आस्था शृद्धा और भक्ति रखना ईश्वर आराधन कहा जाता है उस प्रकार से अष्टांग योग में यम और नियम होते हैं इनका पालन और आचरण कर मनुष्य कर्मयोग से ईश्वर का सानिध्य और सायुज्य प्राप्त कर सदा सदा के लिए जन्म मृत्यु से मुक्त हो परम मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

यमः पञ्च स्मृता विप्र नियमा भुक्तिमुक्तिप्रदा:।
शौचं सन्तोषतपसी स्वाध्यायेश्वरपूजने।।
शरीरं धर्मसंयुक्तं रक्षणीयं प्रयत्नतः।
शौचं तु द्विविधं प्रोक्तं बाह्यमभ्यन्तरं तथा।।
मृज्जलाभ्यां स्मृतं बाह्यं भावशुद्धिरथाssन्तरम।
उभयेन शुचिर्यस्तु स शुचर्नेंत्तरः शुचि:।।
यथा कथंचित्प्राप्त्या च सन्तोषस्तुष्टिरुच्यते।
मनसश्चेन्द्रियाणां च एकाग्र्यं तपः उच्यते।।
तज्जयः सर्वधर्मेभ्य: स धर्म पर उच्यते।
वाचिकं मंत्रजप्यादि मानसं रागवर्जनम।।
शरीरं देवपूजादि सर्वदं तु त्रिधा तपः।
प्रनवाद्यास्ततो वेदाः प्रणवे पर्यवस्थिता:।।

यही प्राबोध है, यही सुमरती है, यही ज्ञान है, यही परम-विज्ञान है।
भज मन 🙏ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः

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